Monday 16 August 2010

याक़ूब मोहसिन

साहेबान आदाब
पेश है शम-ए-अदब
इसमें आसपास मौजूद साथी शायरों का कलाम पेश किया जायेगा.
शुरूआत











जनाब  या़क़ूब मोहसिन
की  इस ग़ज़ल से
मुलाहिज़ा फ़रमाएं

हम कैसे बहादुर हैं दुनिया को दिखाना है
दुश्मन जो वतन के हैं उन सबको मिटाना है

वो लाख करे कोशिश इक इंच नहीं देंगे
सरहद से बहुत आगे दुश्मन को भगाना है

जो तोप के गोलों से बिल्कुल भी नहीं सहमे
उन वीरों की हिम्मत का कायल ये ज़माना है

इतरा के न चल इतना मग़रूर न बन इतना
दो ग़ज़ की ज़मीं है वो जो तेरा ठिकाना है

तुम मिलके बिछड़ने का अहसास न कर लेना
हमको तो शहादत का ये शौक पुराना है

हिम्मत से हर इक मुश्किल आसान हुई मोहसिन
दुश्मन को मिटाने का बस अज़्म बनाना है

शायर: याक़ूब मोहसिन