Sunday 19 September 2010

अ. सलाम फ़रीदी

हज़रात, आदाब
हाज़िर है 
जनाब अ. सलाम फ़रीदी की गज़ल

वो अक़्ल वो शऊर न दे, ऐ ख़ुदा मुझे
ख़ुद से हक़ीर लगने लगे दूसरा मुझे

फिर मेरी चश्मे-शौक़ की ताक़त को आज़मा
ऐ बरक़े-तूर फिर वही जलवा दिखा मुझे

इंसान जिसमें देख ले खुद अपनी असलियत
मिलता नहीं है ऐसा कोई आईना मुझे


मेरी शिकस्त का यही नासेह बना सबब
दुश्मन से मिलके दोस्त ने दी है दग़ा मुझे

मैं ज़िन्दगी के कर्ब से घबराया जब कभी
 यादों ने तेरी बढ़के सहारा दिया मुझे

ममनून यूं फ़रीदी मैं अपनी अना का हूं
हर वक़्त देती रहती है दर्शे-ग़िना मुझे

9 comments:

  1. बेहतरीन....हर शेर बराबर दाद पाने की कुव्वत रखता है| फिर भी जो अशआर अंदर तक उतर गए

    फिर मेरी चश्मे-शौक़ की ताक़त को आज़मा
    ऐ बरक़े-तूर फिर वही जलवा दिखा मुझे
    वाह!!
    ममनून यूं फ़रीदी मैं अपनी अना का हूं
    हर वक़्त देती रहती है दर्शे-ग़िना मुझे
    क्या बात है!!!

    ब्रह्माण्ड

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  2. इंसान जिसमें देख ले खुद अपनी असलियत
    मिलता नहीं है ऐसा कोई आईना मुझे
    ..वाह! आइने सच नहीं बोल पाते क्योंकि हम उन्हें अपनी नज़र से देखते हैं।

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  3. मेरी शिकस्त का यही नासेह बना सबब
    दुश्मन से मिलके दोस्त ने दी है दग़ा मुझे

    मैं ज़िन्दगी के कर्ब से घबराया जब कभी
    यादों ने तेरी बढ़के सहारा दिया मुझे

    बहुत खूब, बेहतरीन रचना

    http://veenakesur.blogspot.com/

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  4. इंसान जिसमें देख ले खुद अपनी असलियत
    मिलता नहीं है ऐसा कोई आईना मुझे


    मेरी शिकस्त का यही नासेह बना सबब
    दुश्मन से मिलके दोस्त ने दी है दग़ा मुझे

    उम्दा ग़ज़ल !खूबसूरत अदायगी

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  5. इंसान जिसमें देख ले खुद अपनी असलियत
    मिलता नहीं है ऐसा कोई आईना मुझे

    बेहतरीन...सलाम साहब को हमारा सलाम...आप उनका कलाम और पढ़वायें...कमाल का लिखते हैं सलाम साहब...हर शेर दाद का हकदार है...शुक्रिया आपका उनकी ये गज़ल हम तक पहुँचाने के लिए...

    नीरज

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  6. बहुत उम्दा ग़ज़ल,खूब सूरत कलाम .......

    इंसान जिसमें देख ले खुद अपनी असलियत
    मिलता नहीं है ऐसा कोई आईना मुझे

    सभी शेर कमाल के !
    दाद कुबूल फरमाएं!

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  7. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  8. फिर मेरी चश्मे-शौक़ की ताक़त को आज़मा
    ऐ बरक़े-तूर फिर वही जलवा दिखा मुझे


    इंसान जिसमें देख ले खुद अपनी असलियत
    मिलता नहीं है ऐसा कोई आईना मुझे
    फरीदी साहब, इन दो अश'आर को पढ़ कर न जाने क्‍यूँ ऐसा लग रहा है कि आप तरन्‍नुम के भी बादशाह होंगे। साफ़ दिख रहा है कि ये कलाम जिस शाइर का है उसने बाकायदा तालीम हासिल की है ग़ज़ल कहने की।
    दिली मुबारकबाद।

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