हज़रात, आदाब
हाज़िर है
जनाब अ. सलाम फ़रीदी की गज़ल
वो अक़्ल वो शऊर न दे, ऐ ख़ुदा मुझे
ख़ुद से हक़ीर लगने लगे दूसरा मुझे
फिर मेरी चश्मे-शौक़ की ताक़त को आज़मा
ऐ बरक़े-तूर फिर वही जलवा दिखा मुझे
इंसान जिसमें देख ले खुद अपनी असलियत
मिलता नहीं है ऐसा कोई आईना मुझे
मेरी शिकस्त का यही नासेह बना सबब
दुश्मन से मिलके दोस्त ने दी है दग़ा मुझे
मैं ज़िन्दगी के कर्ब से घबराया जब कभी
यादों ने तेरी बढ़के सहारा दिया मुझे
ममनून यूं फ़रीदी मैं अपनी अना का हूं
हर वक़्त देती रहती है दर्शे-ग़िना मुझे