साहेबान आदाब
पेश है शम-ए-अदबइसमें आसपास मौजूद साथी शायरों का कलाम पेश किया जायेगा.
शुरूआत
जनाब या़क़ूब मोहसिन
की इस ग़ज़ल सेमुलाहिज़ा फ़रमाएं
हम कैसे बहादुर हैं दुनिया को दिखाना है
दुश्मन जो वतन के हैं उन सबको मिटाना है
वो लाख करे कोशिश इक इंच नहीं देंगे
सरहद से बहुत आगे दुश्मन को भगाना है
जो तोप के गोलों से बिल्कुल भी नहीं सहमे
उन वीरों की हिम्मत का कायल ये ज़माना है
इतरा के न चल इतना मग़रूर न बन इतना
दो ग़ज़ की ज़मीं है वो जो तेरा ठिकाना है
तुम मिलके बिछड़ने का अहसास न कर लेना
हमको तो शहादत का ये शौक पुराना है
हिम्मत से हर इक मुश्किल आसान हुई मोहसिन
दुश्मन को मिटाने का बस अज़्म बनाना है
शायर: याक़ूब मोहसिन
स्वागत है. बहुत सुन्दर प्रयास है ये आपका. आज जब पूरी दुनिया केवल अपने बारे में सोच रही है, ऐसे में दूसरों के बारे में न केवल सोचने बल्कि उन्हें समने लाने की कोशिश करने वाला ये ब्लॉग नई मिसाल पेश करेगा.
ReplyDeleteइतरा के न चल इतना मग़रूर न बन इतना
दो ग़ज़ की ज़मीं है वो जो तेरा ठिकाना है
बस इस सच को ही यदि याद रखा जाये तो शायद बहुत सी बुराइयां स्वत: ही समाप्त हो जायें.
तुम मिलके बिछड़ने का अहसास न कर लेना
हमको तो शहादत का ये शौक पुराना है
बहुत सुन्दर शेर, मोहसिन साहब और आप बधाई के पात्र हैं. ढेरों शुभकामनाएं.
इतरा के न चल इतना मग़रूर न बन इतना
ReplyDeleteदो ग़ज़ की ज़मीं है वो जो तेरा ठिकाना है
ज़िंदगी की हक़ीक़त जिसे कभी झुठलाया नहीं जा सकता
तुम मिलके बिछड़ने का अहसास न कर लेना
हमको तो शहादत का ये शौक पुराना है
वाह! क्या बात है!
शहादत के साथ शौक़ का इस्तेमाल ,बहुत ख़ूब!
शाहिद साहब बहुत बहुत शुक्रिया इस सार्थक ब्लॉग के लिए
मोहसिन भाई,
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल कही आपने।
आपके जज़्बे पर एक मत्ले का शेर अर्ज़ है कि:
क्या साथ मे लाये थे, क्या साथ में जाना है
दुनिया में हरइक सिम्त हमें अम्न बसाना है।
इतरा के न चल इतना मग़रूर न बन इतना
ReplyDeleteदो ग़ज़ की ज़मीं है वो जो तेरा ठिकाना है
आदरणीय शाहिद सहाब,
आपके इस सुन्दर प्रयास की जीतनी प्रसंशा की जाए कम है ......इस जतन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद !
मोहसिन साहब की ये ग़ज़ल देशभक्ति की भावनाओं से लबरेज़ बहुत ही गहरा प्रभाव छोड़ती है पाठक पर ......मोहसिन साहब का अभिवादन और ढेरों बधाई !
इतरा के न चल इतना, मगरूर न बन इतना
ReplyDeleteदो गज की ज़मीं है वो, जो तेरा ठिकाना है
वह-वा !!
बहुत ही खूबसूरत शेर कहा है जनाब ने ... वाह !!
ग़ज़ल के बाक़ी शेर भी असरदार हैं
मोहसिन साहब से तआरुफ़ करवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
और जनाब-ए-मोहसिन साहब को सलाम
शाहिद जी,
ReplyDeleteबहुत ही सराहनीय कदम और हम सब के लिए सौभाग्य की बात, अब और नए अशआर से मुखातिब होने का अवसर मिलेगा. फिलहाल मोहसिन जी को बहुत बहुत बधाई. गहरा प्रभाव छोडती ग़ज़ल.
तुम मिलके बिछड़ने का अहसास न कर लेना
ReplyDeleteहमको तो शहादत का ये शौक पुराना है
बहुत बढ़िया गज़ल...शाहिद जी आपका यह प्रयास बहुत बढ़िया है..
शाहिद भाई, बहुत नेक काम का बीड़ा उठाया है आपने. मोहसिन साहब का पुख्ता कलाम देखकर बहुत सुकून का एहसास हुआ. मैं जिन अशआर को कोट करना चाहता था, बकिया लोगों ने भी उन्हें ही हदफ़ मुकर्रर कर लिया, लिहाज़ा कापी-पेस्ट का इरादा मुल्तवी.
ReplyDeleteमोहसिन साहब को मेरा शुक्रिया पहुंचाएं और आपसे तवक्को कि ऐसे ही साहिब-इ-फन हजरात से मुतआरिफ कराते रहेंगे.
शाहिद जी आपका ये प्रयास बहुत अच्छा है हमे भी सब की गज़लें पढने का अवसर मिलेगा। मोहसिन भाई की गज़लें बहुत अच्छी लगी\
ReplyDeleteवो लाख करे कोशिश इक इंच नहीं देंगे
सरहद से बहुत आगे दुश्मन को भगाना है
जो तोप के गोलों से बिल्कुल भी नहीं सहमे
उन वीरों की हिम्मत का कायल ये ज़माना है
इतरा के न चल इतना मग़रूर न बन इतना
दो ग़ज़ की ज़मीं है वो जो तेरा ठिकाना है
वाह वाह क्या बात है। शुभकामनायें
इतरा के न चल इतना मग़रूर न बन इतना
ReplyDeleteदो ग़ज़ की ज़मीं है वो जो तेरा ठिकाना है
वाह...सुभान अल्लाह...वाह...याकूब साहब की बेहतरीन ग़ज़ल हम तक पहुँचाने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया...आप बहुत सबब का काम कर रहे हैं ऐसे बहुत से अज़ीम शायर हैं जो बहुत अच्छा कहते हैं लेकिन उनका कहा बहुत अधिक लोगों तक नहीं पहुंच पाता... वजह कोई भी हो...आपके इस नेक काम से हम ऐसे ही बेजोड़ शायरों से समय समय पर रूबरू होने की आस लगाये बैठे हैं...
गुज़ारिश है के शायर के कलाम के साथ साथ आप उनका छोटा सा तार्रुफ़ भी कराएँ ताकि पता चले के शायर कहाँ का है और कैसा है...शुक्रिया...
आज जब सब अपनी ढपली पीटने में मसरूफ हैं ऐसे में किसी दुसरे की बात करना हिम्मत का काम है...मेरा एक शेर है:-
राग अपने और अपनी ढपलियां
पीठ दूजी थपथापाता कौन है
मुझे इस सवाल का जवाब मिल गया है....शाहिद मिर्ज़ा.
नीरज
वो लाख करे कोशिश इक इंच नहीं देंगे
ReplyDeleteसरहद से बहुत आगे दुश्मन को भगाना है
जो तोप के गोलों से बिल्कुल भी नहीं सहमे
उन वीरों की हिम्मत का कायल ये ज़माना है..
वाह! अपने बहुत ही शानदार और उम्दा ग़ज़ल लिखा है जिसके बारे में कहने के लिए अल्फाज़ कम पर गए! आपकी लेखनी को सलाम!
wallah!!! kya baat hai
ReplyDeleteवो लाख करे कोशिश इक इंच नहीं देंगे
सरहद से बहुत आगे दुश्मन को भगाना है
जो तोप के गोलों से बिल्कुल भी नहीं सहमे
उन वीरों की हिम्मत का कायल ये ज़माना है..
बहु बढ़िया गज़ल है|
ReplyDeleteइतरा के न चल इतना मग़रूर न बन इतना
ReplyDeleteदो ग़ज़ की ज़मीं है वो जो तेरा ठिकाना है
तुम मिलके बिछड़ने का अहसास न कर लेना
हमको तो शहादत का ये शौक पुराना है
आपकी पसन्द आपकी कलम की तरह शानदार है ,कोशिश वाकई जानदार है .ढेरो बधाईयां इस नई शुरुआत के लिये .
भाई शाहिद मिर्ज़ा जी
ReplyDeleteआदाब !
आपका कार्य प्रशंसनीय है , वंदनीय है ।
हर पोस्ट का इंतज़ार रहा करेगा ।
जनाब या़क़ूब मोहसिन साहब की ग़ज़ल मत्ले से मक़्ते तक
क़ाबिले-ता'रीफ़ है ।
बड़ी मेहरबानी , उन तक मेरी मुबारकबाद पहुंचाएं ।
शस्वरं पर आपका हार्दिक स्वागत है , समय मिले तो आइएगा …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
वो लाख करे कोशिश इक इंच नहीं देंगे
ReplyDeleteसरहद से बहुत आगे दुश्मन को भगाना है
जो तोप के गोलों से बिल्कुल भी नहीं सहमे
उन वीरों की हिम्मत का कायल ये ज़माना ह
Moahsin bhaee kamal kee gajal hai her sher la jawab.Shahid bhaee aapka shukriya inse parichay karane ke liye.
प्रशंसनीय शुरुआत के लिए बधाई !आगे भी ऊँचाइयाँ छूती रहे !
ReplyDeleteवो लाख करे कोशिश इक इंच नहीं देंगे
ReplyDeleteसरहद से बहुत आगे दुश्मन को भगाना है
इतरा के न चल इतना मग़रूर न बन इतना
दो ग़ज़ की ज़मीं है वो जो तेरा ठिकाना है
बहुत खूबसूरत शेर हैं....
welcome brother .
ReplyDeleteनायाब ग़ज़ल
ReplyDeleteशुक्रिया
Subhan alla ... kya kamaal ki gazasl hai ... har sher jaise khilta huva Gulab bhaarat maata ke charno mein ....
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी चिट्ठा जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteमोहसिन भाई,
ReplyDeleteइस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आपकोबहुत बहुत मुबारकबाद!!
aadaab...
ReplyDeletemubarak ho mohsin bhai..
Wah, is naye blog ke liye aap ko jitani badhaee den kum hai. Aur shayar mohsin bhee kee shayri bhee gazab.
ReplyDeleteहम कैसे बहादुर हैं दुनिया को दिखाना है
दुश्मन जो वतन के हैं उन सबको मिटाना है
वो लाख करे कोशिश इक इंच नहीं देंगे
सरहद से बहुत आगे दुश्मन को भगाना है