मुशायरों की महफिल में हजारों की तादाद में जमा सामाईन की भीड़ के मिजाज को चार दशक से बखूबी समझने वाले अनवर जलालपुरी की निजामत किसी भी मुशायरे की कामयाबी की जमानत बन जाती है। मदरसा एजुकेशन बोर्ड उत्तर प्रदेश के चेयरमैन की जिम्मेदारी के साथ प्रदेश सरकार की ओर से उन्हें मंत्री का दर्जा हासिल है। इसके अलावा वे उर्दू अरबी फारसी यूनिवर्सिटी व उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी के सदस्य भी हैं। अकबर द ग्रेट टीवी सीरियल के लिए गीत व संवाद लेखन कर चुके अनवर जलालपुरी की नौ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें खारे पानी का सिलसिला, खूशबू की रिश्तेदारी, जागती आंखें, जमाले-मुहम्मद, जर्बे-लाइलाह, बादस्त खुदा, हरर्फे-अबजद, रोशनी के सफीर, अपनी धरती अपने लोग शामिल हैं। शायरी की एक किताब अभी प्रेस में है। कुरआन पाक के तीसवें पारे का उर्दू शायरी में तर्जुमा और श्रीमद भागवत गीता के 700 में से अब तक 350 श्लोक को शायरी में पेश कर चुके हैं। इसके अलावा असलम इलाहाबादी ने उनके व्यक्तित्व पर एक किताब भी लिखी है। उत्तर प्रदेश राज्य उर्दू एकेडमी समेत विभिन्न स्तर पर अवार्ड हासिल कर चुके अनवर जलालपुरी अब तक अमेरिका, कनाडा, पाकिस्तान, इंग्लैंड, दुबई, शारजाह, बहरीन, दोहा, कतर, समेत विभिन्न देशों में होने वाले मुशायरों में शिरकत करते हुए देश ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी निजामत के फन का लोहा मनवा चुके हैं।
पेश है अनवर जलालपुरी से शाहिद मिर्जा की बातचीत-
सवाल- नज्म और नस्र (गद्य और पद्य) में अब तक नौ किताबें लिखने के बावजूद ‘अनवर जलालपुरी’ एक नाजिमे-मुशायरा के रूप में ही अधिक जाने जाते हैं?
जवाब- हां, ये सच है कि दस किताबों का लेखक, अकबर द ग्रेट जैसे हिट टीवी सीरियल का गीतकार और संवाद लेखक होने के बावजूद शोहरत निजामत की फनकारी तक सिमटकर रह गई है। जिसका ज्यादातर हिस्सा अतिश्योक्ति से भरा होता है। हर मुशायरे के बाद यह महसूस होता है कि निजामत के अतिश्योक्ति भरे फन, या कहें झूठ के नीचे मेरी शायरी की सच्चाई दबकर रह गई है। लेकिन यही जिन्दगी की हकीकत है, कि हर शख्स की पहचान उसके सृजन और योग्यता के किसी एक सूबे में सिमट जाती है।
सवाल- मुशायरों और किताबों की शायरी में काफी फर्क महसूस किया जाता है, इसका मुख्य कारण क्या मानते हैं?
जवाब- इसे खास-ओ-आम की शायरी का फर्क कह सकते हैं। देखा जाए तो मिर्जा गालिब की शायरी में यह दोनों रंग साफ नजर आते हैं। हर जमाने में पढ़े-लिखे और गैर पढ़े लिखे लोगों की जेहनी सतह होती है। इसी के लिहाज से जबान इस्तेमाल होती है। मुशायरों में हर वर्ग सामाईन मौजूद होते हैं। जहां शायरी के साथ साथ तरन्नुम के साथ की जाने वाली अदायगी भी शायर को शोहरत और कामयाबी दिलाती है।
सवाल- इससे ऐसा नहीं लगता कि शायरी का कुछ नुकसान हुआ है?
जवाब- अगर बीते तीन दशक में आए परिवर्तन पर नजर डाली जाए, तो फर्क महसूस होता है। इसमें शायरों की खता कम, सुनने वालों की कमजोरी ज्यादा है। पहले उर्दू जानने वालों की तादाद ज्यादा थी, जिनके बीच बेहतर उर्दू का इस्तेमाल करने के मौके हासिल थे। लेकिन आज जो पीढ़ी नजर आती है, वो कान्वेंट स्कूलों से शिक्षा हासिल करके आ रही है। मैं खुद अपनी बात करूं, तो 42 साल अंग्रेजी का प्रवक्ता रहा, स्टाफ रूम में साथियों के बीच हिन्दी में गुफ्तगू करता रहा। मुशायरों में मैयारी उर्दू और इन सबके बीच एक घरेलू जबान का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा हर शख्स के साथ होता है। जाहिर है, मुशायरों में आने वाले हर वर्ग के बीच आम जबान की शायरी का इस्तेमाल आज की जरूरत बन गया है।
सवाल- इस तब्दीली को किस रूप में देखते हैं?
जवाब- जमाने के साथ चलना जरूरी होता है। बात चाहे शायरी की हो, या जबान की, जमाने के तकाजे को पूरा किया ही जाना चाहिए।
अनवर जलालपुरी की एक गजल-
आदमी दुनिया में अच्छा या बुरा कोई नहीं
सबकी अपनी मसलहत है बेवफा कोई नहीं
हर तरफ ना अहल लोगों की सजी है अंजुमन
काफिलों की भीड़ है और रहनुमा कोई नहीं
कौन सी बस्ती में या रब तूने पैदा कर दिया
दुश्मनी पर सब हैं आमादा, खफा कोई नहीं
तीरगी में कारनामे जिनके रोशन हैं बहुत
रोशनी में उनसे बढ़कर पारसा कोई नहीं
अपना गम कहने से पहले सोच ले ‘अनवर’ जरा
संग दिल माहौल में दर्द आशना कोई नहीं
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शाहिद मिर्जा शाहिद
पेश है अनवर जलालपुरी से शाहिद मिर्जा की बातचीत-
सवाल- नज्म और नस्र (गद्य और पद्य) में अब तक नौ किताबें लिखने के बावजूद ‘अनवर जलालपुरी’ एक नाजिमे-मुशायरा के रूप में ही अधिक जाने जाते हैं?
जवाब- हां, ये सच है कि दस किताबों का लेखक, अकबर द ग्रेट जैसे हिट टीवी सीरियल का गीतकार और संवाद लेखक होने के बावजूद शोहरत निजामत की फनकारी तक सिमटकर रह गई है। जिसका ज्यादातर हिस्सा अतिश्योक्ति से भरा होता है। हर मुशायरे के बाद यह महसूस होता है कि निजामत के अतिश्योक्ति भरे फन, या कहें झूठ के नीचे मेरी शायरी की सच्चाई दबकर रह गई है। लेकिन यही जिन्दगी की हकीकत है, कि हर शख्स की पहचान उसके सृजन और योग्यता के किसी एक सूबे में सिमट जाती है।
सवाल- मुशायरों और किताबों की शायरी में काफी फर्क महसूस किया जाता है, इसका मुख्य कारण क्या मानते हैं?
जवाब- इसे खास-ओ-आम की शायरी का फर्क कह सकते हैं। देखा जाए तो मिर्जा गालिब की शायरी में यह दोनों रंग साफ नजर आते हैं। हर जमाने में पढ़े-लिखे और गैर पढ़े लिखे लोगों की जेहनी सतह होती है। इसी के लिहाज से जबान इस्तेमाल होती है। मुशायरों में हर वर्ग सामाईन मौजूद होते हैं। जहां शायरी के साथ साथ तरन्नुम के साथ की जाने वाली अदायगी भी शायर को शोहरत और कामयाबी दिलाती है।
सवाल- इससे ऐसा नहीं लगता कि शायरी का कुछ नुकसान हुआ है?
जवाब- अगर बीते तीन दशक में आए परिवर्तन पर नजर डाली जाए, तो फर्क महसूस होता है। इसमें शायरों की खता कम, सुनने वालों की कमजोरी ज्यादा है। पहले उर्दू जानने वालों की तादाद ज्यादा थी, जिनके बीच बेहतर उर्दू का इस्तेमाल करने के मौके हासिल थे। लेकिन आज जो पीढ़ी नजर आती है, वो कान्वेंट स्कूलों से शिक्षा हासिल करके आ रही है। मैं खुद अपनी बात करूं, तो 42 साल अंग्रेजी का प्रवक्ता रहा, स्टाफ रूम में साथियों के बीच हिन्दी में गुफ्तगू करता रहा। मुशायरों में मैयारी उर्दू और इन सबके बीच एक घरेलू जबान का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा हर शख्स के साथ होता है। जाहिर है, मुशायरों में आने वाले हर वर्ग के बीच आम जबान की शायरी का इस्तेमाल आज की जरूरत बन गया है।
सवाल- इस तब्दीली को किस रूप में देखते हैं?
जवाब- जमाने के साथ चलना जरूरी होता है। बात चाहे शायरी की हो, या जबान की, जमाने के तकाजे को पूरा किया ही जाना चाहिए।
अनवर जलालपुरी की एक गजल-
आदमी दुनिया में अच्छा या बुरा कोई नहीं
सबकी अपनी मसलहत है बेवफा कोई नहीं
हर तरफ ना अहल लोगों की सजी है अंजुमन
काफिलों की भीड़ है और रहनुमा कोई नहीं
कौन सी बस्ती में या रब तूने पैदा कर दिया
दुश्मनी पर सब हैं आमादा, खफा कोई नहीं
तीरगी में कारनामे जिनके रोशन हैं बहुत
रोशनी में उनसे बढ़कर पारसा कोई नहीं
अपना गम कहने से पहले सोच ले ‘अनवर’ जरा
संग दिल माहौल में दर्द आशना कोई नहीं
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शाहिद मिर्जा शाहिद
बहुत बहुत शुक्रिया एक अज़ीम हस्ती से रू ब रू कराने के लिये और
ReplyDeleteईद के मुबारक मौक़े पर उम्दा इंटर्व्यू और ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये भी
Jiyo Shahid Bhai...Behad khoobsurat interview hai...aap batayen kya Anwar sahab ki koi kitab devnagri yane hindi men bhi shaya hue hai kya...agar haan to wo kahan se kaise mil sakti hai? Pls jawab den.
ReplyDeleteMera mobile kharab hone ki vajah se aapka nambar mere paas nahin hai varna aapse guftagu kar leta...
Meri aur se Eid Mubarak.
कौन सी बस्ती में या रब तूने पैदा कर दिया
ReplyDeleteदुश्मनी पर सब हैं आमादा, खफा कोई नहीं
क्या बात है!!
इतना शानदार साक्षात्कार पढवाने के लिये शुक्रिया. ऐसे ही और भी साक्षात्कार आपके खाते में होंगे, उम्मीद है, जल्दी ही पढने को मिलेंगे.
आदमी दुनिया में अच्छा या बुरा कोई नहीं
ReplyDeleteसबकी अपनी मसलहत है बेवफा कोई नहीं
हर तरफ ना अहल लोगों की सजी है अंजुमन
काफिलों की भीड़ है और रहनुमा कोई नहीं
कौन सी बस्ती में या रब तूने पैदा कर दिया
दुश्मनी पर सब हैं आमादा, खफा कोई नहीं
तीरगी में कारनामे जिनके रोशन हैं बहुत
रोशनी में उनसे बढ़कर पारसा कोई नहीं
अपना गम कहने से पहले सोच ले ‘अनवर’ जरा
संग दिल माहौल में दर्द आशना कोई नहीं
kise kahe khas ,hame to poori gazal hi khas nazar aai ,interview bahut hi shaandaar hai ,padhkar maja aa gaya ,aapki achchhi -2 baate hum tak bhi pahunchi ,iske liye aapki aabhari hoon .umeed hai aese ratn aur milenge .
शाहिद साहब ,
ReplyDeleteबहुत शानदार इंटरव्यू पढने को मिला. अनवर जलाल्पुरी को मैंने पिछली साल कानपूर महोत्सव में सूना था. कई महीनों तक उनके कहे शेर ज़ेहन में गूंजते रहे. लेकिन आज आपके जरिये उनकी ज़िन्दगी की बहुत सारी चीजों के बारे में पता चला..
आखिर में ग़ज़ल पढ़कर तो दिल खुश हो गया.
शाहिद "अजनबी"
Asstt. Prof.
Naraina College Of Engg. & Technology, Kanpur
इतनी अज़ीम शख्सियत से रु ब रु करवाने का शुक्रिया..बहुत खुल कर बातें कीं अनवर अनवर जलालपुरी साहब ने
ReplyDeleteग़ज़ल भी शानदार है.
gajal meri pehli pasand hi ASHOK PURI [beuro chief samvad media Haridwar U>K.
ReplyDeleteaansu se muah ko dhone wale hum jo ro diye ,
ReplyDeletetum samajh lena tumko nahin hum duniya bhi kho diye
from GRSKS CHANDPURI ( AMAN SINGH) ,AMBEDAKARNAGER,UP
aansu se muah ko dhone wale hum jo ro diye ,
ReplyDeletetum samajh lena tumko nahin hum duniya bhi kho diye
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aansu se muah ko dhone wale hum jo ro diye ,
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